बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1699 को गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की। खालसा पंथ की स्थापना के पीछे उद्देश्य था धर्म व नेकी के आदर्श के लिए सदैव तत्पर रहना। आनंदपुर, पंजाब में अपने अनुयायियों के साथ मिलकर गुरुजी ने राष्ट्र हित में बलिदान देने वालों का समूह बनाया, जिसे उन्होंने नाम दिया खालसा पंथ। खालसा फारसी शब्द है, जिसका मतलब है खालिस यानि पवित्र। यहीं पर उन्होंने वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरु जी की फतेह का नारा दिया।
गुरुजी ने केशगढ़ साहिब आनंदपुर में पंज प्यारों द्वारा तैयार किया हुआ अमृत सबको पिलाकर खालसा को ऊर्जा दी। खालसा का मतलब है वह सिख जो गुरु से जुड़ा है वह किसी का गुलाम नहीं, वह पूर्ण स्वतंत्र है। बैसाखी के दिन गुरुजी ने उपस्थित जनसमूह से पूछा कि क्या कोई अपना सिर देने के लिए तैयार है, तब एक-एक कर पांच लोगों ने हामी भरी। गुरु साहिब ने इनको अमृत छकाया और कहा, जहां पर यह पंज प्यारे होंगे, वहीं मैं आऊंगा। यह पंज प्यारे पूरे भारत से आए थे। इनमें भाई दया सिंह जी लाहौर से थे तो भाई धरम सिंह जी हस्तिनापुर से। भाई हिम्मत सिंह जी जगन्नाथ पुरी से थे तो भाई मोखम सिंह जी गुजरात के द्वारका से थे। भाई साहिब सिंह जी कर्नाटक के बिदर से थे। गुरु गोविंद सिंह जी ने गुरुत्व को त्याग गुरु गद्दी गुरुग्रंथ साहिब को सौंपी। व्यक्ति पूजा को निषिद्ध किया। हिंदू मान्यता के अनुसार बैसाखी के दिन सूर्यदेव मेष राशि में प्रवेश करते हैं। इसलिए इसे त्योहार के रूप में मनाया जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है।
इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।